Month: अक्टूबर 2017

एक नया नाम

मार्क लैबरटन ने अपने लेख “Leading by Naming” में नाम की ताकत बताया l  उसने कहा, “केवल एक संगीतप्रेमी मित्र ने मुझे ‘संगीतप्रेमी’ पुकारा था जिसका प्रभाव अभी भी मुझ में है l मैंने वाद्य कभी नहीं बजाया और एकल गायक नहीं था l फिर भी .... मैंने महसूस किया कि लोग मुझे जानते हैं और मुझसे प्रेम करते हैं ... [उसने] मुझे देखकर पुष्टि की, और मेरे विषय सच्ची बात को सराहा l”

यीशु द्वारा शमौन को नया नाम देने पर संभवतः उसने भी ऐसा ही महसूस किया होगा l अन्द्रियास यीशु को मसीह मानकर, अपने भाई शमौन को  उसके पास लाया (यूहन्ना 1:41-42) l यीशु ने शमौन के भीतर गहरी सच्चाई को प्रमाणित कर सराहा l वास्तव में, यीशु ने उसके लिए परेशानी बनने वाली पराजय और जल्दबाज़ स्वभाव भी देखा l किन्तु उससे अधिक उसने शमौन को कलीसिया का संभावित अगुआ देखा l यीशु ने उसे कैफा अर्थात् चट्टान कहा-पतरस का आरामी नाम (यूहन्ना 1:42; देखें मत्ती 16:18) l

हमारे साथ भी ऐसा ही है l परमेश्वर हमारे अहंकार, क्रोध, और दूसरों के प्रति हममें प्रेमाभाव देखता है, किन्तु यह भी जानता है कि हम मसीह में हैं l वह हमें धर्मी और परमेश्वर से अपना मेल किये हुए (रोमियों 5:9-10); क्षमा प्राप्त, पवित्र, और प्रिय (कुलु. 2:13; 3:12); चुने हुए और विश्वासी (प्रका. 17:14) लोग पुकारता है l स्मरण रखें परमेश्वर हमें कैसे देखता है, और वह नाम हमें कैसे परिभाषित करता है l

अच्छा चरवाहा

मैं चिंतित होकर अपने पति के साथ हॉस्पिटल के कमरे में बैठी थी l मेरे छोटे बेटे की आंख की दोषनिवारक शल्यचिकित्सा हो रही थी और मैंने घबराहट और चिंता में अपने पेट में झटके महसूस किये l मैंने परमेश्वर की शांति के लिए प्रार्थना करने की कोशिश की l बाइबिल खोलकर मैंने परिचित परिच्छेद यशायाह 40 खोलकर अपने लिए कुछ नया खोजना चाही l  

पढ़ते समय, मैं ठहर गयी, क्योंकि उन प्राचीन शब्दों ने मुझे याद दिलाया कि प्रभु “चरवाहे के समान अपने झुण्ड को [चरते हुए] “भेड़ों के बच्चों को अँकवार में लिए रहेगा” (पद.11) l उस क्षण मेरी चिंता चली गयी और मैंने प्रभु को हमें संभालते हुए, अगुवाई करते हुए, और देखभाल करते हुए महसूस किया l प्रभु, मुझे इसकी ही ज़रूरत थी, मैंने धीमे से प्रार्थना की l मैंने खुद को शल्यचिकित्सा के दौरान और उसके बाद(जो सफल रही) परमेश्वर की शांति से घिरी हुई पायी l

परमेश्वर ने नबी यशायाह के द्वारा अपने लोगों का उनके दैनिक जीवन में सुख देनेवाला चरवाहा बनने की प्रतिज्ञा की l हम भी उसको अपनी चिंता बताकर और उसके प्रेम और शांति को खोजकर उसके कोमल देखभाल का अनुभव कर सकते हैं l हम जानते हैं कि वह हमें अपने हृदय के निकट रखकर हमें अपने अँकवार में उठानेवाला हमारा अच्छा चरवाहा है l

दो-पंखों वाला सूर्य

मिट्टी का एक प्राचीन मुहर यरूशलेम पुरातत्व इंस्टीट्यूट की आलमारी में पाँच साल तक पड़ा रहा क्योंकि यरूशलेम की पुरानी दीवार के दक्षिणी भाग के निकट खुदाई में मिली इस  3,000 वर्ष पुरानी वस्तु के प्रारंभिक जांच में इसका महत्व पता न चला l किन्तु तब एक शोधकर्ता के उस मुहर पर खुदे शब्दों की गहन जांच में एक बड़ी खोज सामने आई l अभिलेख प्राचीन इब्री में था : “यहूदा के राजा आहाज (के पुत्र) हिजकिय्याह का l”

मुहर के बीच जीवन का प्रतीक दो-पंखों वाला सूर्य की आकृति है l मुहर खोजनेवाले पुरातत्ववेत्ताओं का मानना है कि राजा हिजकिय्याह ने इस मुहर का उपयोग खतरनाक बीमारी से प्रभु की चंगाई पाने के बाद परमेश्वर की सुरक्षा के रूप में करने लगा (यशायाह 38:1-8) l हिजकिय्याह प्रभु से चंगाई मांग रहा था l और परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना सुनकर उसे यह कहकर, “मैं [सूर्य की छाया को] दस अंश पीछे की ओर लौटा दूंगा”  एक चिन्ह दिया कि वह दी गयी अपनी प्रतिज्ञा पूरी करेगा (पद.8) l

पुरातत्विक शिल्पकृति के ये तथ्य हमें उत्साहवर्धक ताकीद देते हैं कि बाइबिल के लोग हमारी तरह सीख रहे थे कि सहायता मांगने पर प्रभु हमारी सुनता है l और यद्यपि हमारी अपेक्षानुसार उसका उत्तर नहीं होता, हम उसकी करुणा और सामर्थ्य में विश्राम कर सकते हैं l सूर्य की गति को प्रभावित करनेवाला हमारे हृदयों को भी प्रभावित कर सकता है l

चेतावनी!

उन दिनों में जब मैं नियमित यात्रा करता था, मैं हर दिन एक नए शहर में रात बिताते समय होटल में जागने की घंटी लगवाता था l मुझे सुबह उठकर अपने काम में जाने के लिए एक व्यक्तिगत अलार्म के साथ, टेलीफोन की तेज घंटी की भी ज़रूरत होती थी l

प्रेरित यूहन्ना प्रकाशितवाक्य में एशिया प्रान्त की सात कलीसियाओं को लिखे पत्रों में चेतावनी देता है l उसने सरदीस की कलीसिया को यीशु मसीह का यह सन्देश दिया : “मैं तेरे कामों को जानता हूँ : तू जीवित तो कहलाता है, पर है मरा हुआ l जागृत हो, और उन वस्तुओं को जो बाकी रह गईं हैं ... उन्हें दृढ़ कर, क्योंकि मैं ने तेरे किसी काम को अपने परमेश्वर के निकट पूरा नहीं पाया” (प्रका. 3:1-2) l

हम आत्मिक मेहनत के मध्य परमेश्वर के साथ अपने सम्बन्ध में सुस्ती पर ध्यान नहीं देते l किन्तु परमेश्वर हमें याद दिलाता है “स्मरण कर कि तू ने कैसी शिक्षा प्राप्त की और सुनी थी, और उसमें बना रह” (पद.3) l

कुछ लोगों ने महसूस किया है कि आत्मिक रूप से जागृत रहने के लिए प्रति सुबह  बाइबिल पठन और प्रभु से प्रार्थना करने के लिए समय निर्धारण सहायक है l यह कोई काम नहीं है किन्तु यीशु के साथ समय बिताने का आनंद है और दिन के काम के लिए उसकी ओर से तैयारी है l

कीड़ा से लड़ाई तक

10 वर्ष का क्लेओ पहली बार मछली पकड़ते समय चारे के डिब्बे में झांककर हिचकिचाया l आखिरकार उसने मेरे पति से कहा, “मेरी मदद करें, मैं कीड़ा से डरता हूँ l उसके भय ने उसे काम करने से रोका l

भय वयस्कों को भी पंगु कर देता है l गिदोन भी भयभीत हुआ होगा जब परमेश्वर का स्वर्गदूत उससे मिलने आया जब वह मिद्यानी शत्रुओं से छिपकर गेहूँ साफ़ कर रहा था (न्यायियों 6:11) l स्वर्गदूत ने उससे कहा कि वह युद्ध में परमेश्वर के लोगों की अगुवाई करने के लिए परमेश्वर द्वारा चुना गया था (पद.12-14) l

गिदोन का प्रतुत्तर? “हे मेरे प्रभु, विनती सुन, मैं इस्राएल को कैसे छुड़ाऊँ? देख, मेरा कुल मनश्शे में सब से कंगाल है, फिर मैं अपने पिता के घराने में सब से छोटा हूँ” (पद.15) l परमेश्वर की उपस्थिति की निश्चितता के बाद भी, गिदोन भयभीत था और चिन्ह माँगा कि परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञा अनुसार इस्राएल को बचाने के लिए उसे उपयोग करेगा (पद.36-40) l और परमेश्वर ने उसके निवेदन का उत्तर दिया l इस्राएली यूद्ध में सफल रहे और 40 वर्षों तक शांति का आनंद उठाया l

हम सब भी अनेक तरह से भयभीत होते हैं-कीड़ों से लड़ाई तक l गिदोन की कहानी हमें सिखाती है कि हम इसमें निश्चित रहें : यदि परमेश्वर हमसे कुछ करने को कहता है, वह उसे करने के लिए सामर्थ्य और ताकत देगा l

पर्याप्त

हम पति-पत्नी से हमारे घर में छोटे समूह की मेजबानी करने के आग्रह को मैंने अस्वीकार किया l बैठने के लिए अपर्याप्त स्थान और छोटा घर होने से मैंने  अयोग्यता महसूस की l हम यह भी नहीं जानते थे, हम इस चर्चा में मददगार होंगे या नहीं l मैं चिंतित थी कि मुझे भोजन पकाना होगा जिसके लिए मेरे पास उत्सुकता और धन कम था l मेरी समझ में हमारे पास “प्रयाप्त” साधन नहीं था, हमारे लिए करने को “पर्याप्त” नहीं था l किन्तु हम परमेश्वर और अपने समुदाय के लिए करना चाहते थे, इस कारण भय के बाद भी, हम तैयार हो गए l अगले पाँच वर्षों तक अपने बैठक में इस समूह की मेजबानी आनंददायक थी l

मैं परमेश्वर के सेवक, एलिशा के पास रोटी लानेवाले व्यक्ति के अन्दर भी समान अनिच्छा देखता हूँ l  एलिशा ने उसे लोगों को परोसने को कहा था, किन्तु वह व्यक्ति शंकित था  कि सौ लोगों के लिए वह अपर्याप्त होगा l वह अपनी मानवीय समझ में भोजन को अपर्याप्त मानकर परोसना नहीं चाहा l फिर भी वह पर्याप्त से अधिक था (2 राजा 4:44), क्योंकि परमेश्वर ने आज्ञाकारिता में दिए हुए उसके दान को, पर्याप्त बना दिया l

अयोग्य महसूस करने पर, अथवा अपने दान को अपर्याप्त समझने पर, याद रखे कि परमेश्वर चाहता है कि जो हमारे पास है उसे हम विश्वासयोग्य आज्ञाकारिता में दे दें l वह ही उसे “पर्याप्त” कर देगा l

कब तक?

विवाह के बाद मैंने सोचा कि मेरे शीघ्र बच्चे होंगे l ऐसा नहीं होने की पीड़ा के कारण मैं प्रार्थना करने लगी l मैंने अक्सर परमेश्वर को पुकारा, “कब तक?” मैं जानती थी कि परमेश्वर मेरी अवस्था को बदल सकता है l क्यों नहीं वह बदल रहा था?”

क्या आप परमेश्वर के लिए ठहरे हैं? क्या आप पूछ रहे हैं, कब तक, प्रभु, इससे पूर्व कि न्याय इस पृथ्वी पर आ जाए? कैंसर के इलाज से पूर्व? मेरे कर्ज से निकलने से पूर्व?

हबक्कूक नबी इन भावनाओं से परिचित था l ई.पू. सातवीं शताब्दी में, उसने प्रभु को पुकारा : “हे यहोवा, मैं कब तक तेरी दोहाई देता रहूँगा, और तू न सुनेगा? मैं कब तक तेरे सम्मुख ‘उपद्रव,’ उपद्रव’ चिल्लाता रहूँगा? क्या तू उद्धार नहीं करेगा? (हबक्कूक 1:2-3) l वह लम्बे समय तक प्रार्थना और संघर्ष करता रहा कि किस तरह एक सामर्थी परमेश्वर दुष्टता, अन्याय, और भ्रष्टाचार को यहूदा में जारी रहने दे सकता है l जहाँ तक हबक्कूक का ख्याल था, परमेश्वर को हस्तक्षेप कर देना चाहिए था l क्यों नहीं परमेश्वर कुछ कर रहा था?

ऐसे दिन होते हैं जब हम सोचते हैं जैसे परमेश्वर निष्क्रिय है l हबक्कूक की तरह, हमने लगातार परमेश्वर से पुछा है, “कब तक?”

फिर भी, हम अकेले नहीं हैं l हबक्कूक की तरह, परमेश्वर हमारी भी सुनता है l हम निरंतर उनको परमेश्वर पर डालें l परमेश्वर हमारी सुनता है, और अपने समय में उत्तर देगा l

यदि मुझे उस वक्त मालूम होता ...

घर लौटते समय, मैं “Dear Younger Me,” गीत सुन रही थी जो खूबसूरती से पूछता है : यदि मैं अतीत में लौट पाती, जानते हुए जो मैं अभी जानती हूँ, आप अपने युवा व्यक्तित्व से क्या कहते? सुनते हुए, मैंने अपने कम बुद्धिमान युवा व्यक्तित्व को थोड़ी बुद्धि और चेतावनी देना चाही l हममें से बहुतों में जीवन के किसी मोड़ पर भिन्न तरीके से काम करने की इच्छा हुई होगी-काश हम सब कुछ दोहरा पाते l

किन्तु गीत बताता है कि यद्यपि हमारा अतीत हमें खेदित करे, हमारे समस्त अनुभवों ने हमें बनाया है l हम लौट नहीं सकते अथवा अपने चुनाव या पाप के परिणाम को बदल नहीं सकते l किन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो कि हमें अपने अतीत के भारी बोझ और गलतियों को उठाकर घूमने की ज़रूरत नहीं l यीशु के काम के कारण! “जिसने ... अपने बड़ी दया से हमें जीवित आशा के लिए नया जन्म दिया” (1 पतरस 1:3) l

विश्वास में उसकी ओर लौटकर अपने पापों के लिए खेदित होने पर, वह हमें क्षमा करेगा l हम उस दिन बिल्कुल नए बनाए जाएंगे और आत्मिक रूपांतरण की प्रक्रिया आरंभ करेंगे (2 कुरिं. 5:17) l हमने क्या किया था (अथवा नहीं किया था) इसका कोई औचित्य नहीं, क्योंकि उसके काम से हम क्षमा किये गए l हम आगे बढ़ते हुए, वर्तमान का पूरा लाभ उठाकर उसके साथ भविष्य की आशा कर सकते हैं l मसीह में, हम स्वतंत्र हैं!

हमारे ऊपर मंडराना

बेट्टी की बेटी विदेश दौरे से अस्वस्थ्य होकर घर लौटी l दर्द असहनीय होने पर बेट्टी और उसके पति उसे हॉस्पिटल के एमरजेंसी कमरे में ले गए l डॉक्टर्स और नर्सेज उसका इलाज करने लगे, फिर कुछ घंटे बाद एक नर्स ने बेट्टी से बोली, “वह ठीक हो जाएगी! हम उसकी अच्छी देखभाल करेंगे और वह स्वस्थ्य हो जाएगी l” उस क्षण बेट्टी ने शांति और प्रेम महसूस किया l उसने जाना कि जब वह अपनी बेटी के विषय चिंतित थी, प्रभु अपने बच्चों की देखरेख करनेवाला, कठिन समय में शांति देनेवाला सिद्ध पालक है l

व्यवस्थाविवरण की पुस्तक में, प्रभु ने अपने लोगों को याद दिलाया कि मरुभूमि में फिरते समय उसने पालक की तरह अपने बच्चों को संभालता रहा l उसने उनको नहीं छोड़ा, किन्तु उकाब की तरह, जो “अपने बच्चों के ऊपर ऊपर मंडलाता है, वैसे ही अपने पंख फैलाकर उनको अपने परों पर उठा लिया” (32:11) l वह चाहता था कि वे याद रखें कि उनके मरुभूमि में कठिनाई और संघर्ष के बावजूद, उसने उनको नहीं छोड़ा l

हम भी अनेक चुनौतियों का सामना करने के बावजूद इस बात से ढाढ़स प्राप्त कर सकते हैं कि हमारा परमेश्वर हमें नहीं छोड़ेगा l जब हम पराजय महसूस करें, प्रभु एक उकाब की तरह अपने पंख फैलाकर हमें उठा लेगा (पद.11) जब वह शांति लेकर आएगा l